छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का विश्लेषणात्मक अध्ययन

 

पुरूषोत्तम कूमार साहू1, समीक्षा चन्द्राकर2

1अतिथि व्याख्याता, राजनीति विज्ञान बद्री प्रसाद लोधी स्नातकोत्तर शासकीय महाविद्यालय,

आरंग, जिला - रायपुर (..)

2सहायक प्राध्यापक, राजनीति विज्ञान राजीव लोचन शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,

श्राजीम, जिला - गरियाबंद (..)

*Corresponding Author E-mail: pksahu901@gmail.com

 

ABSTRACT:

प्रस्तुत शोध पत्र छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का विष्लेषणात्मक अध्ययन पर आधारित है। छत्तीसगढ़ की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक सांस्कृति एवं राजनीतिक परिदृष्य को ध्यान में रखते हुए यहाँ कि जनता की जीवन स्तर पर होने वाली ऐतिहासिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। देश की विकास में छत्तीसगढ़ राज्य का अतुलनीय योगदान सदैव रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य का इतिहास अति प्राचीन है, जहाँ प्रागैतिहासिक काल से वर्तमान तक ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध है। छत्तीसगढ़  राज्य के निर्माण के पश्चात् राज्स की विकास एवं अभ्युदय सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए एक महत्वूपर्ण भूमिका निभाई है। स्वतंत्रता संग्राम के तहत् यहाँ की स्थानीय सेनानी बिट्रीश साम्राज्य पर प्रभावषीलता समय समय पर दिखाई जो कि राष्ट्र को स्वतंत्रता प्रदान करने में एवं यहाँ की राजव्यवस्था की गौरव को बनाया रखा, साथ ही साथ विद्रोह में भी सहायता प्रदान किया गया जो राज्य की कुषल व्यवस्था को एक आयाम मिला है। अतः स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़  राज्य निर्माण एंव विषेषताओं की एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का एक मजबूत नींव का निर्वहन होने लगा।

 

KEYWORDS: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, स्वतंत्रता संग्राम, बिट्रीश साम्राज्य, राजव्यवस्था, छत्तीसगढ़ का विकास, विद्रोह, प्राचीनतम इतिहास।

 

 

 

1. प्रस्तावना:-

धान का कटोरा कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ अंचल मध्य प्रदेश पर्नगठन अधिनियम, 2000 के द्वारा भारत के हद्य प्रदेश मध्य प्रदेश से पृथक होकर 1 नवम्बर, 2000 को भारतीय संघ का 26 वॉं राज्य बना। यह एक विशाल सुखी गौरवशाली प्रान्त है, यहाँ सभी साधन उपलब्ध है। छत्तीसगढ़ एवं विन्ध्यप्रदेश खनिज भण्डार में यह प्रदेश कामधेनु है। यहाँ का सांस्कुतिक वैभव देश की अमूल्य सम्पदा है। 1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश के पितामह प्रथम मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल के उत्तन उद्गारों के साथ मध्यप्रदेश ने अपनी विकास यात्रा का शुभारम्भ किया। किन्तु दुर्भाग्य से स्वतंत्र भारत का सबसे विराट प्रदेश का असफल प्रयोग साबित हुआ। इस राज्य की भौगोलिक सीमाएँ 1746 से 245 उत्तरी अक्षांश तथा 8015 से 8020 पूर्वी देशांतर के मध्य विस्तृत है। प्रदेष की सीमा भारत के 7 राज्यों से घिरी हुई है। उत्तर में उत्तरप्रदेष मध्यप्रदेष, उत्तर पूर्व में झारखण्ड, मध्य एवं दक्षिण पूर्व में उडीसा, दक्षिण में तेलंगाना एंव आंध्रप्रदेष, दक्षिण-पष्चिम में महाराष्ट्र, मध्य पष्चिम में मध्यप्रदेष के मांडला बालाघाट जिले तथा पष्चिमत्तोर में मध्यप्रदेष के शहडोल डिंडोरी जिलो द्वारा इसकी सीमाएँ निर्धारित होती है। छत्तीसगढ़ अपेक्षाकृत कम ऊचॉंई वाला (औसत 200 मी.) क्षेत्र हैं। भू-संरचना के दृष्टि से प्रदेष को स्पष्ट भागो में विभाजित किया जा सकता है। उत्तरी भाग बघेलखण्ड का पठार गोंडवाना शैल समूह तथा प्रीकैम्बियन ग्रेनाइट का बना है। छत्तीसगढ़ का मैदान हड़प्पा शैल समूह से काटकर कर बना है और दण्डकारण्य में पुनः प्रीकैम्बियन ग्रेनाइट तथा धारवाड शैल समूह है। परिवाहन की दृष्टि से उत्तरी पहाड़ी क्षेंत्र एवं दण्डकारण्य पिछड़ा हैं जबकि केन्द्रीय छत्तीसगढ़ अपेक्षाकृत विकसित हैं किन्तु वह संतोषजनक नही हैं। रेल, परिवाहन, बिट्रीश काल से ही स्थापित है। अतः यह स्पष्ट है कि अंचल काफी पिछड़ा हुआ हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन से देष के पिछड़े एवं अपेक्षित छत्तीसगढ़ अंचल के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। छत्तीसगढ़ में विकास की अपार संभावनाएं हैं - नैसर्गिक साधनों एवं जनषक्ति के उचित उपयोग के द्वारा इस नए राज्य की प्रगति एवं समृद्धी  की ओर अग्रसर किया जा सकता है।

 

2. अध्ययन के उद्देष्य:-

1.    छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के इतिहास का अध्ययन करना।

2.    छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के कारणों का अध्ययन करना।

3.    राज्य के अभ्युदय एवं प्रमुख विशेषताओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन करना।

 

3. छत्तीसगढ़ राज्य का इतिहास - छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना 1 नवम्बर, 2000 को हुई। उससे पूर्व यह मध्य प्रदेश का भाग था। यहॉं के प्राचीन शिलालेखों और ताम्रपत्रों में वर्णित जानकारी के आधार पर अविभाजित मध्य प्रदेश के दक्षिण पूर्वी भाग को छत्तीसगढ़ के नाम से जाना जाता था। शिलालेखों, ताम्रपत्रों एवं प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों में इस नाम का उल्लेख नही मिलता है। इस भू-भाग के प्राचीनतम नामों एवं मतो को निम्नाकिंत शीर्षकों में किया गया है।

·      दक्षिण कोसल:-  छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कोसल था। वाल्मिकी कृत रामायण में उत्तर कोसल और दक्षिण कोसल का उल्लेख मिलता है। सम्भवतः उत्तर कोसल सद्य तट पर स्थित था, जबकि दक्षिण कोसल विद्यांचल पर्वत माला के दक्षिण में विस्तृत था। राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या इसी दक्षिण कोसल की राजकुमारी थी। प्राप्त अभिलेखों और प्रशस्तियों में भी इस भू-भाग के लिए दक्षिण कोसल नाम प्रयुक्त हुआ था। रतनपुर शाखा के कल्चूरी शासक जाजल देव के रतनपुर अभिलेख में दक्षिण कोसल अंकित है।

·      महाकोसल:- प्रसिद्ध पुरातत्वेत्ता अलेक्जेन्डर कनिघंम ने अपनी पुरातत्विक रिपोर्ट आर्कियसर्वेऑफ इण्डिया में इस प्रदेष के लिए महाकोसल शब्द का प्रयोग किया है।

·      कोसल:- कालिदास रचित रघुवंषम में कोसल और उत्तर कोसल का उल्लेख है। गुप्तकालिन इलाहाबाद हरिसेन लिखित प्रयोग प्रषस्ति में भी कोसल का उल्लेख हैं।

·      चेदिसगढ़:- रायबहादूर हीरा लाल ने छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम चेदिसगढ़ उल्लेख किया हैं। उनका यह विचार है कि प्रदेष में चेदीवंषीय राजाओं का राज्य था। उस समय वह भाग चेदिसगढ़ कहा जाता था। यही चेदिसगढ़ बिगढ़ कर छत्तीसगढ़ हो गया।

 

सहित्य में छत्तीसगढ़ नाम का प्रयोग सर्वप्रथम खैरागढ़ के राजा लक्ष्मीनिधि राय के काल में कवि दलराव राम ने सन् 1994 में किया

लक्ष्मीनिधि राय सुनो चित दे, गढ़ छत्तीस मे गढैया रही।

 

·      सतवाहन युग:-  सतवाहन वंश ने लम्बे समय तक छत्तीसगढ़ में राज्य किया मौर्य सम्राज्य के पतन के पश्चात् दक्षिण भारत में सतवाहन राज्य की स्थपना हुई। सतवाहन नरेश अपीलक की एकमात्र मुद्रा रायगढ़ जिले के बालपुर के निकट महानदी से प्राप्त हुई है। अपीलक मुद्रा की प्राप्ती से इस काल में यहॉं तात्कालीन सतवाहन के अधिकार की पुष्टि होती है।

·      गुप्त युग:- जिस समय उत्तर भारत में पाकटक शासन कर रहे थे उसी समय उत्तर भारत में, गुप्त शासन कर रहे थे। गुप्तकालीन छत्तीसगढ़ के बानपरद से प्राप्त गुप्तकालीन सिक्कों से इस बात की पुष्टि होती है कि छत्तीसगढ़ गुप्तो के प्रभावहीन था।

·      क्षेत्रीय राजवंश:- छत्तीसगढ़ मे क्षेत्रीय राजवंशों ने भी शासन किया अलग-अलग समयों में अलग-अलग राजवंशों ने शासन किया। जैसे- राजर्षितुल्य, कुलवंश, शरभपुरीय वंश, पाण्डुवंश, सोमवंश, बल-नाग वंश, छिन्दकवंश, फनि नागवंश, इन क्षेत्रीय राजवंशों की शासनकाल की जानकारी पुरातत्विक खुदाई में प्राप्त अवशेषों सिक्कों से होते है।

·      कलचुरियों का काल:- 875 - 1741 छत्तीसगढ़ वास्तविक राजनीति इतिहास कल्चुरी राजवंश की स्थापना के साथ आरम्भ होता है, उनकी कई शाखाएँ थी, जिनमें से दो छत्तीसगढ़ में स्थापित हुई - रतनपुर एवं रायपुर

·      रतनपुर के कल्चुरी:- नवीं सदी के अंत में त्रिपुरी के कल्चुरियों ने छत्तीसगढ़ में अपनी शाखा स्थापित किया। कल्चुरी शासक इस प्रकार है - कालिंगराज, कमलराज, रत्नराज, रत्नदेव, पृथ्वीदेव, जाजल्लदेव, रत्नदेव द्वितीय, पृथ्वीदेव द्वितीय, जाजल्लदेव द्वितीय, जगतदेव, रत्नदेव तृतीय प्रमुख शासक हुए।

·      रायपुर के कल्चुरी:-  14 वीं सदी . के अंतिम भाग में रतनपुर की कल्चुरी दो शाखाएँ थीं। उनमे रायपुर द्वितीय शाखा थी। शिलालेखों के अनुसार 14 वीं सदी . में अंतिम भाग में रतनपुर के राजा का रिश्तेदार लक्ष्मीदेव प्रतिनिधि स्वरूप को रायपुर भेजा और वह वही होकर रह गये। लक्ष्मीदेव के पुत्र सिंघन ने शत्रुओं के 18 गढ़ जीत लिए। सिघन ने रतनपुर नरेश की प्रभुसत्ता मानने से इन्कार कर दिया और अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। सिंघण के बाद उसका पुत्र रामचन्द्र (रामदेव) रायपुर का शासक बना।

·      परवर्ती शासक 1420 - 1751 .:-  रायपुर के परवर्ती शासकों के नाम है - केषवदेव 1420-38, भुनेष्वरदेव 1438-63, मानसिंहदेव, संतोष्सिंहदेव, सम्मानसिंहदेव, चामुण्डादेवसिंह, धनसिंहदेव, बलदेव सिंह देव, फतेसिंहदेव, यादव सिंहदेव आदि।

·      सन् 1741 में मराठों का छत्तीसगढ़ पर आक्रमण हुआ और 1758 में छत्तीसगढ़ में कल्चुरियों की सत्ता समाप्त हुई।

·      मराठों का शासनकाल:- मराठों का शासन कल्चुरियों की सत्ता समाप्त होने के बाद आरम्भ हुई। सन् 1830 से 1854 के बीच नागपुर और छत्तीसगढ़ पुनः मराठों के नियन्त्रण में रहा। 27 नवम्बर सन् 1817 में नागपुर में अंग्रेजो के साथ हुए युद्ध में मराठों की पराजय हुई और यह क्षेंत्र अंग्रेजो के अधिपत्य में गया। सन् 1818 से 1830 तक मराठों के एजेन्ट के रूप में अंग्रेजो ने कैप्टन एडमंड के नियन्त्रण में छत्तीसगढ़ का शासन संभाला। अंग्रेजी शासन के खिलाफ छत्तीसगढ़ मे भी जगह-जगह विरोध हुआ।

·      स्वतंत्रता संग्राम:-  सन् 1854 में छत्तीसगढ़ ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बन गया था। यह अंचल वनाच्छादित और शान्त था, लेकिन अंग्रेजो की गुलामी के खिलाफ विद्रोह की आग यहाँ भी उसी तरह धधकने लगी थी, जैसे कि शेष देश में भारत माता की तकलीफों से छत्तीसगढ़ का जनमानस भी साचेत था और प्रतिकार के लिए तैयार था।

·      सोहागपुर विद्रोह:- 15 अगस्त, 1857 को गुरूर सिंह, रणमतसिंह और संबलपुर के कई जमींदारो के नेतृत्व में बड़ी संख्या में विद्रोही एकत्रित होकर उत्तर की ओर प्रस्थान किए। रायपुर के तत्कालीन डिप्टी कमिष्नर ने इन विद्रोहियों पर आक्रमण कर विद्रोह को दबा दिया। इन विद्रोहियों के नेता सतारा नरेश के भूतपूर्व वकिल रंगाजी बापू थे।

·      सोनाखान का विद्रोह:- सोनाखान के जमीदार वीर नरायण सिंह जनहितकारी कार्यो के कारण प्रजा में अत्यंत लोकप्रिय थे। सन् 1856 में इस क्षेंत्र में भीषण आकाल पड़ा, लोग भूखे मरने लगे। ऐसी स्थिति में वीर नरायण सिंह ने अगस्त 1856 में कसडोल के गोदाम से आनाज लूट लिया और अपनी प्रजा में बॉंट दिये। अंग्रेजो ने उन्हें डकैती और लूट पाट के आरोप मे 24 अक्टूबर, 1856 काफी कठनाईयों के बाद सम्बलपुर में गिरफ्तार कर रायपुर के जसस्तंम्भ चौक में सार्वजनिक तौर पर फॉंसी दे दी गईं। वे स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद माने जाते है।

·      सुरेन्द्रसाय का विद्रोह:- सन् 1827 में संबलपुर नरेश महाराज साय की मृत्यु उपरान्त परम्परानुसार राजगद्दी पर सुरेन्द्र साय का अधिकार बनता था। अंग्रेजो ने इसे स्वीकार नही किया। वीर नारायण सिंह के पुत्र गोविंद सिंह के साथ मिलकर उन्होने अंग्रेजो की नींद हराम कर दी। 23 जनवरी, 1864 को वे अपने भाईयों के साथ में गिरफ्तार कर लिया गया। 28 फरवरी, 1884 में लगभग 90 वर्ष की आयु में असीरगढ़ की किले में सुरेन्द्र साय की मृत्यु हो गई। सुरेन्द्र  साय को 1857 के महाविद्रोह का अंतिम शहीद कहा जाता है।

·      रायपुर में सैन्य विद्रोह:- वीर नारायण सिंह को फॉंसी पर लटकाने के विरोध में विद्रोह भड़क उठा। लेफ्टिनेंट सी.बी. एल स्मिथ ने विद्रोहियों को कुचलने का भरपूर प्रयास किया। हनुमान सिंह फरार हो गये और फिर अंग्रेज उन्हें कभी भी में गिरफ्तार कर सके। इस विद्रोह में में गिरफ्तार अन्य 17 लोगों को 22 जनवरी सन् 1858 को फॉंसी दे दी गई।

·      भूमकाल:- सन् 1910 में बस्तर क्षेत्र के सबसे बडे़ तथा व्यापक आन्दोलन को महान भूमकाल कहा जाता है। 2 फरवरी, 1910 को विद्रोहियों ने पुसपाल बाजार की लूट से विद्रोह का श्री गणेष किया यह विद्रोह ढाई माह तक चला। अंग्रेजी सरकार ने दमन चक्र चलाया कई आदिवासी मारे गए। महान भूमकाल मे लाल मिर्च और आम की टहनी संदेश वाहक और प्रतीक थी। इन सबके नेता थे नेतानार ग्राम के क्रांन्तिकारी गुण्डाधुर।

·      कण्डेल सत्याग्रह:- 1920 में धमतरी के कण्डेल ग्राम के सत्यग्राह ने सम्पूर्ण देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। 1920 में बिना मॉंगे जल प्रवाहित कर दिया। गॉव वालो ने अनुबन्ध मानने से इन्कार कर दिया इसके विरोध में गॉंव वालो ने विद्रोह कर दिया। पं. सुन्दर लाल शर्मा, नारायण राव मेघावाले और छोटे लाल श्रीवास्तव की उपस्थिति में सभा हुई। सरकार का दमन चक्र तेज हो गया। आन्दोलन कई माह चला और इस प्रकार गॉधी जी के यहॉं आने से पहले ही सत्याग्रह आन्दोलन सफलतापूर्वक समाप्त हो गया।

·      गॉंधी जी की पहली यात्रा:- कण्डेल सत्याग्रह का नेतृत्व करने के लिए सुन्दर लाल शर्मा ने गॉंधी जी को आमंन्त्रित किया। 20 सितम्बर 1920 को गॉंधी जी पं. सुन्दर लाल शर्मा के साथ रायपुर स्टेशन पहुंचे। दूसरे दिन 21 सितम्बर को गॉंधी जी ने धमतरी, कुरूद, तथा रायपुर के लोगो को सम्बोधित कर स्वतंत्रता आन्दोलन में सम्मिलित होने के लिए आह्वान किया।

·      बिलासपुर जेल में माखनलाल चतुर्वेदी:- बिलासपुर में प्रान्तीय राजनैतिक सम्मलेन के दौरान 12 मार्च 1921 को उन्होंने ओजस्वी भाषण दिया। भाषण को राजद्रोह समझा गया और उन्हें  12 मई 1921 को राजद्रोह के आरोप में जबलपुर में गिरफ्तार कर बिलासपुर की जेल लाया गया। जेल में ही उन्होंने पूरी नही सुनोगे तान”, पुष्प की अभिलाषा”, पर्वत की अभिलाषा जैसी कविताएँ लिखी।

·      राष्ट्रीय नेताओं का आगमन:- असहयोग आन्दोलन के समय प्रथम श्रेणी के नेता रायपुर आये सन् 1921 मे ही डॉ. राजेन्द्र प्रसाद चक्रवर्ती, राजगोपालचार्य, सुभद्रा कुमारी चौहान, सेठ गोविंददास, मौलाना कुतुबद्दीन आदि नेताओं ने रायपुर आकर जनता को सम्बोधित कर उनका उत्साहवर्धन किया।

·      गॉंधी जी की द्वितीय छत्तीसगढ़ यात्रा:- हरिजनोत्थान से अभिप्रेरित गॉंधी जी का छत्तीसगढ़ में द्वितीय प्रवास 22 नवम्बर से 28 नवम्बर 1933 के मध्य हुआ। 24 नवम्बर को गॉंधी जी ने पं. सुन्दर लाल शर्मा द्वारा संचालित सतनामी आश्रम और अनाथालय का निरीक्षण किया। 24 नवम्बर 1933 को पुरानी बस्ती के एक मंदिर को हरिजनों के लिए खोल दिया गया। 25 नवम्बर को गॉंधी जी धमतरी गए। गॉंधी जी सतनामियों के आग्रह पर धमतरी के सतनामी मोहल्ले में गए जहॉं उन्होंने भोजन किया।

·      स्वतंत्रता प्राप्ति:- 15 अगस्त, 1947 की सुबह रायपुर के गॉंधी चौक पर स्वतंत्रता सेनानी बलीराम लाखे ने तिरंगा फहराया। दुर्ग विधानसभा अध्यक्ष श्री घनश्याम सिंह गुप्त तथा बिलासपुर में तत्कालिक संसदीय सचिव पंडित रामगोपाल तिवारी ने ध्वजारोहण किया।

·      भौगोलिक स्थिति:- यह प्रदेश 1746 से 245 उत्तरी अक्षांश तथा 8015 से 8020 पूर्वी देशान्तर के मध्य विस्तृत है भारत के अन्य छः प्रदेशों (उड़ीसा, मध्य प्रदेश, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश) से घिरे इस राज्य के उत्तर एवं दक्षिणतम बिन्दुओं के बीच की दूरी 360 किलोमीटर एवं पूर्व से पश्चिम बिन्दुओं के बीच की दुरी लगभग 140 किलोमीटर है। इसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 1,37,898.36 वर्ग किलोमीटर है जो भारत के कुल क्षेत्रफल का 4.14 प्रतिशत तथा मध्य प्रदेश का 30.48 प्रतिषत है। सन् 2011 की जनगणनानुसार यहॉं की जनसंख्या 2,55,40,196 थी जो सम्पूर्ण भारत की जनसंख्या का 2.11 प्रतिशत है।

 

·      राज्य में मुख्य रूप से चार प्रकार के अपवाह तंत्र का विकार हुआ है:-

1.    महानदी अपवाह तंत्र:- इस अपवाह तंत्र में महानदी प्रमुख नदी है। प्रदेश में इसका अपवाह क्षेत्र मुख्यतः कवर्धा, दुर्ग, जांजगीर, चांपा, रायपुर, बिलासपुर, तथा रायगढ़ जिलों मे है। प्रमुख नदियाँ इस प्रकार है - शिवनाथ, मनियारी, हसदो, लीलागर, अरपा, तान्दुला, खारून, पैरी, जोंक, सुंरगी, मांड, बोराई, ईब

2.    गोदावरी अपवाह तंत्र:- गोदावरी का उद्गम पश्चिमी घाट में महाराष्ट्र में नासिक के दक्षिण-पश्चिम में स्थित त्रयम्बंक नामक स्थान से 1607 मीटर की ऊॅंचाई से माना जाता है। गोदावरी नदी छत्तीसगढ़ की दक्षिण सीमा बनाती हुई प्रवाहित होती है। इन्द्रावती, कोटरी, सबरी, कोंहका, बाघ आदि इसकी प्रमुख सहायक नदी है।

3.    गंगा अपवाह तंत्र:-  गंगा अपवाह तंत्र का विस्तार राज्य के 15 प्रतिशत भाग में है। बिलासपुर जिले का 5 प्रतिशत रायगढ़ जिले का 14 प्रतिशत तथा सरगुजा जिले का 78 प्रतिशत भाग गंगा बेसिन के अन्तर्गत है। इसकी सहायक नदियॉं है- कन्हार, रेहार, गोपद, बनास, बीजल, सोप आदि नदियाँ है।

4.    नर्मदा अपवाह तंत्र:-  कवर्धा जिले में बहने वाली ढांजर, टांडा एवं उसकी सहायक नदियाँ नर्मदा अपवाह तंत्र के अन्तर्गत आती है। राज्य में इस अपवाह तंत्र की नदियों का प्रवाह क्षेंत्र 710 वर्ग किमी क्षेंत्र में हैं।

 

4. छत्तीसगढ़ राज्य का अभ्युदय:-

सर्वप्रथम छत्तीसगढ़ राज्य की स्पष्ट कल्पना करने वाले व्यक्ति थे - विद्वान सहित्यकार, हरिजन सेवक एवं स्वतंत्रता सेनानी पं. सुन्दर लाल शर्मा जिन्होंने 1918 में अपनी पांडुलिपी में छत्तीसगढ़ राज्य का स्पष्ट रेखाचित्र खीचतें हुए इसे इस प्रकार परिभाषित किया था जो भू-भाग उत्तर में विध्याश्रेणीय नर्मदा से, दक्षिण की ओर इन्द्रावती ब्राम्हणी तक है, जिसके पष्चिम में वेदगंगा बहती हैं और जहाँ पर नामवाची ग्राम सजा हैं, जहॉं स्त्रीयों का पहनावा (वस्त्र पहनावा) प्रायः एक वस्त्र है तथा जहॉं धान की खेती होती है वही भू-भाग छत्तीसगढ़ हैं।

 

5. छत्तीसगढ़ राज्य की मांग:-

1924 . रायपुर जिला परिषद में एक संकल्प पारित कर मध्य प्रान्त से छत्तीसगढ़ राज्य की मॉंग की थी। उसके बाद कांग्रेस के त्रिपूरी (जबलपुर) अधिवेशन 1939 में भी मॉंग रखी गई। 1953 1955 में रायपुर के विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने माध्यप्रान्त की विधानसभा में मॉंग रखी, इस बीच 28 जनवरी, 1956 को डॉ. खूबचंद बघेल की अध्यक्षता में राजनांदगॉंव में छत्तीसगढ़ महासभा का गठन किया गया। छत्तीसगढ़ पुर्नगठित मध्यप्रान्त अर्थात मध्यप्रदेष का अंग बना दिया गया।

छत्तीसगढ़ राज्य बनाने के पीछे निम्न कारण थे:-

·      सांस्कृतिक कारण:- छत्तीसगढ़ की भाषा, बोली, रहन-सहन, परम्परा एवं सांस्कृतिक शेष मध्य प्रदेश से भिन्न है।

·      भौगोलिक कारण:- छत्तीसगढ़ का क्षेत्रफल भारत के अनेक राज्यों तथा विश्‍व के अनेक राष्ट्रों से अधिक हैं भोपाल से दूरी के कारण प्रशासनिक नियन्त्रण नही हो पाता था, नीतिगत फैसले करने एवं उनके क्रियान्वयन में विलम्ब होता था।

·      प्रषासनिक कारण:- महत्वपूर्ण संस्थान उपक्रम छत्तीसगढ़ में स्थापित कर शेष मध्य प्रदेश के क्षेत्रों में ही रखे गयें।

·      शोषण:- क्षेंत्र से प्राप्त राजस्व की तुलना में यहॉं के विकास हेतु अपर्याप्त व्यय।

·      मानव संसाधन:- यहॉं की जनसंख्या अधिक हैं यहॉं श्रम संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।

·      आर्थिक कारण:-  यहॉं के खनिज संसाधनों की प्रचुरता से दोहन किन्तु उससे प्राप्त राजस्व का पर्याप्त लाभ नही।

उपर्युक्त कारणों से छत्तीसगढ़ की मॉंग अभिप्रेरित थी।

 

6. छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण:-

18 मार्च, 1994 को साजा (दुर्ग) से कॉंग्रेस विधायक द्वारा मध्यप्रदेश विधानसभा में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनाएं जाने की दिशा में अषासकीय संकल्प प्रस्तुत किया गया जो सर्वसम्मति से पारित हुआ। 1 सितम्बर, 1998 को राज्य विधान सभा ने राष्ट्रपति द्वारा भेजे मध्यप्रदेश पुर्नगठन विधेयक, 1998 में लगभग 40 संशोधनों के साथ वापस राष्ट्रपति को भेजा गया। अब राज्य निर्माण कार्य केन्द्र सरकार का कार्य रह गया था। 9 अगस्त, 2000 को राज्य सभा में एक संषोधन (छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की सीटों से सम्बन्धित) के साथ पारित हो गया। इस संशोधन को लोकसभा ने भी उसी दिन स्वीकार कर लिया।

 

28 अगस्त, 2000 को भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात् यह मध्यप्रदेश पुर्नगठन अधिनियम 2000 बन गया, जो भारत के राजपत्र में अधिनियम संख्या 28 के रूप में अधिसूचित हुआ। इस प्रकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप निर्धारित तिथि 1 नवम्बर, 2000 को मध्यप्रदेश से पृथक होकर छत्तीसगढ़ भारत संघ का 26वॉं राज्य बन गया।

 

7. निष्कर्ष:-

प्रत्येक शासन व्यवस्था में कुछ़ कुछ़ गुण दोष विद्यमान रहता हैं। यदि आज हम किसी शासन व्यवस्था से खुश है तो भविष्य में वही शासन व्यवस्था हमारी नराजगी का कारण बन जाती है। प्रकृति परिवर्तनशील है और इस परिवर्तनशीलता के साथ-साथ सभी में परिवर्तन होना आवश्यक हो जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन से देश के पिछ़डे एवं अपेक्षित अंचल के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। छत्तीसगढ़ में विकास की अपार संभावनाएं हैं - नैसर्गिक साधनों और जनशक्ति के उचित उपयोग के द्वारा इस नए राज्य की प्रगति एवं समृद्धी  की ओर अग्रसर किया जा सकता है।

 

8. संदर्भ सूची:-

1.    सिन्हा किशोर एवं श्रीवास्तव योगेश, प्रतियोगिता सार-परीक्षा गीता प्रिटिंग प्रेस रायपुर ..

2.    डॉं. नैयर सौम्या एवं झा कुमार विभाष (2008), .. समागम जनसम्पर्क विभाग

3.    चौधरी नीरज एवं कुमार संजीव (2008), छत्तीसगढ़ सामान्य ज्ञान

4.    डॉं. कुमार अशोक (2014), यू.जी.सी. नेट राजनीति विज्ञान उपकार प्रकाशन आगरा

5.    त्रिपाठी संजय एवं त्रिपाठी चंन्दन (2013), वृहद् संदर्भ .. उपकार प्रकाशन आगरा 2

6.    डॉं. मित्र नाथ रमेन्द्र एवं डॉं. शुक्ला शान्ता (1990), छत्तीसगढ़ दीक्षित ब्रदर्स रायपुर

7.    डॉं. शुक्ला एस.पी. एवं डॉं. हुसैन शकील एवं सिंह सत्यप्रकाष (2004), शिक्षादूत .. एक परिचय, शिक्षादूत

8.    जनसम्पर्क विभाग (2014), .. नया भारत नया प्रतीक

 

 

Received on 26.02.2025      Revised on 11.03.2025

Accepted on 30.03.2025      Published on 25.03.2025

Available online from March 27, 2025

Int. J. Ad. Social Sciences. 2025; 13(1):19-24.

DOI: 10.52711/2454-2679.2025.00004

©A and V Publications All right reserved

 

This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License. Creative Commons License.